tag:blogger.com,1999:blog-2325815271737046362024-03-13T09:49:33.391-07:00Fizaa (The Urdu Poetry Web Magazine)SH'ER -O- ADAB KI MAHFILBahaar Bareilvihttp://www.blogger.com/profile/11037924590776933502noreply@blogger.comBlogger58125tag:blogger.com,1999:blog-232581527173704636.post-46498449048923414332014-05-04T07:35:00.003-07:002014-05-04T07:35:35.714-07:00आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देख
घर अँधेरा देख तू, आकाश के तारे न देख।
एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ
आज अपने बाजुओं को देख पतवारें न देख।
अब यक़ीनन ठोस है धरती हक़ीक़त की तरह
यह हक़ीक़त देख, लेकिन ख़ौफ़ के मारे न देख।
वे सहारे भी नहीं अब, जंग लड़नी है तुझे
कट चुके जो हाथ, उन हाथों में तलवारें न देख।
दिल को बहला ले, इजाज़त है, मगर इतना न उड़
रोज़ सपने देख, लेकिन इस क़दर प्यारे न देख।
ये धुँधलका है नज़र का, तू महज़ मायूस है
रोग़नों को देख, दीवारों में दीवारें न देख।
राख, कितनी राख है, चारों तरफ़ बिखरी हुई
राख में चिंगारियाँ ही देख, अँगारे न देख।
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देख
घर अँधेरा देख तू, आकाश के तारे न देख।
एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ
आज अपने बाजुओं को देख पतवारें न देख।
अब यक़ीनन ठोस है धरती हक़ीक़त की तरह
यह हक़ीक़त देख, लेकिन ख़ौफ़ के मारे न देख।
वे सहारे भी नहीं अब, जंग लड़नी है तुझे
कट चुके जो हाथ, उन हाथों में तलवारें न देख।
दिल को बहला ले, इजाज़त है, मगर इतना न उड़
रोज़ सपने देख, लेकिन इस क़दर प्यारे न देख।
ये धुँधलका है नज़र का, तू महज़ मायूस है
रोग़नों को देख, दीवारों में दीवारें न देख।
राख, कितनी राख है, चारों तरफ़ बिखरी हुई
राख में चिंगारियाँ ही देख, अँगारे न देख।
</div>
Bahaar Bareilvihttp://www.blogger.com/profile/11037924590776933502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-232581527173704636.post-35918161279485793992014-05-04T07:35:00.001-07:002014-05-04T07:35:07.635-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देख
घर अँधेरा देख तू, आकाश के तारे न देख।
एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ
आज अपने बाजुओं को देख पतवारें न देख।
अब यक़ीनन ठोस है धरती हक़ीक़त की तरह
यह हक़ीक़त देख, लेकिन ख़ौफ़ के मारे न देख।
वे सहारे भी नहीं अब, जंग लड़नी है तुझे
कट चुके जो हाथ, उन हाथों में तलवारें न देख।
दिल को बहला ले, इजाज़त है, मगर इतना न उड़
रोज़ सपने देख, लेकिन इस क़दर प्यारे न देख।
ये धुँधलका है नज़र का, तू महज़ मायूस है
रोग़नों को देख, दीवारों में दीवारें न देख।
राख, कितनी राख है, चारों तरफ़ बिखरी हुई
राख में चिंगारियाँ ही देख, अँगारे न देख।
</div>
Bahaar Bareilvihttp://www.blogger.com/profile/11037924590776933502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-232581527173704636.post-46917049324243867882008-04-09T07:59:00.000-07:002008-04-09T08:18:22.585-07:00ज़मीन पे चल न सका आसमान से भी गयाज़मीन पे चल न सका आसमान से भी गया<br />कटा के पर ये परिंदा उडान से भी गया<br /><br />तबाह कर गयी पक्के मकान की ख्वाहिश<br />मैं अपने गाँव के कच्चे मकान से भी गया<br /><br />परायी आग में कूदा तो क्या मिला तुझ को<br />उसे बचा न सका अपनी जान से भी गया<br /><br />भुलाना चाहा तो भुलाने की इंतहा कर दी<br />वह शख्स अब मेरे वहम ओ गुमान से भी गया<br /><br />किसी के हाथ का निकला हुआ वह तीर हूँ मैं<br />हद्फ़ को छू न सका और कमान से भी गयाBahaar Bareilvihttp://www.blogger.com/profile/11037924590776933502noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-232581527173704636.post-71429005367010774852008-04-09T07:57:00.000-07:002008-04-09T08:20:28.880-07:00क्यूं डरें ज़िंदगी में क्या होगाक्यूं डरें ज़िंदगी में क्या होगा<br />कुछ न होगा तो तजुर्बा होगा<br /><br />हंसती आंखों में झाँक कर देखो<br />कोई आंसू कहीं छुपा होगा<br /><br />इन दिनों नउम्मीद सा हूँ मैं<br />शायद उसने भी ये सुना होगा<br /><br />देखकर तुमको सोचता हूँ मैं<br />क्या किसी ने तुम्हें छुआ होगाBahaar Bareilvihttp://www.blogger.com/profile/11037924590776933502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-232581527173704636.post-47425399276277440182008-04-02T22:28:00.000-07:002008-04-02T22:57:03.423-07:00आंखों का रंग, बात का लहजा बदल गयाआंखों का रंग, बात का लहजा बदल गया<br />वो शख्स एक शाम में कितना बदल गया !<br /><br />कुछ दिन तो मेरा अक्स रहा आईने पे नक्श<br />फिर यूं हु’आ के ख़ुद मेरा चेहरा बदल गया<br /><br />जब अपने अपने हाल पे हम तुम न रह सके<br />तो क्या हु’आ जो हमसे ज़माना बदल गया<br /><br />कदमों टेल जो रेत बिछी थी वो चल परी<br />उस ने चुराया हाथ तो सेहरा बदल गया<br /><br />को’ई भी चीज़ अपनी जगह पर नहीं रही<br />जाते ही एक शख्स के, क्या क्या बदल गया !<br /><br />एक सर-खुशी की मौज ने कैसा किया कमाल<br />वो बे-नियाज़, सारे का सारा बदल गया<br /><br />उठत कर चला गया को’ई वक्फे के दरमियाँ<br />परदा उठता तो सारा तमाशा बदल गया<br /><br />हैरत से सारे लफ्ज़ उसे देखते रहे<br />बातों में अपनी बात को कैसा बदल गया<br />कहने को एक na में दीवार ही बनी<br />घर की फिजा, मकान का नक्शा बदल गया<br /><br />शायेद वफ़ा के खेल से उकता गया था वो<br />मंजिल के पास आ के जो रास्ता बदल गया<br /><br />कायेम किसी भी हाल पे दुनीया नहीं रही<br />ता’बीर खो गयी, कभी सपना बदल गया<br /><br />मंज़र का रंग असल में साया था रंग का<br />जिस ने उसे जिधर से भी देखा बदल गया<br /><br />अन्दर के मौसमों की ख़बर उस की हो गयी<br />उस नौ-बहार-ऐ-नाज़ का चेहरा बदल गया<br /><br />आंखों में जितने अश्क थे जुगनू से बन गए<br />वो मुस्कुराया और मेरी दुनीया बदल गया<br /><br />अपनी गली में अपना ही घर ढूंढते हें लोग<br />“अमजद” ये कौन शाह’र का नक्शा बदल गयाBahaar Bareilvihttp://www.blogger.com/profile/11037924590776933502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-232581527173704636.post-23673164229075088562008-03-30T07:39:00.000-07:002008-03-30T07:41:40.258-07:00जुगाड़जुगाड़ इक नई तेहज़ीब की अलामत है<br />बिना जुगाड़ के जीना यहाँ क़यामत है<br />जुगाड़ है तो चमन का निज़ाम अपना है<br />जुगाड़ ही को हमेशा सलाम अपना है<br />जुगाड़ दिन का उजाला है रात रानी भी<br />जुगाड़ ही से हुकूमत है राजधानी भी<br />जुगाड़ ही से मोहब्बत के मेले ठेले हैं<br />बिना जुगाड़ के हम सब यहाँ अकेले हैं<br />जुगाड़ चाय की प्याली में जब समाती है<br />पहाड़ काट के ये रास्ते बनाती है<br /><br />जुगाड़ बन्द लिफाफे की इक कशिश बन कर<br />किसी अफसर किसी लीडर को जब लुभाती है<br />नियम उसूल भी जो काम कर नहीं पाते<br />ये बैक डोर से वो काम भी कराती है<br />जुगाड़ ही ने तो रिश्वत पे दिल उछाला है<br />जुगाड़ ही से कमीशन का बोल बाला है<br />जुगाड़ एक ज़ुरूरत है आदमी के लिये<br />जुगाड़ रीढ़ की हड्डी है ज़िन्दगी के लिये<br />मैं दूसरों की नहीं अपनी तुम्हें सुनाता हूँ<br />जुगाड़ ही की बदौलत यहाँ पे आया हूँ<br /><br />जुगाड़ क्या है जो पूछोगे हुक्मरानों से<br />यही कहेंगे वो अपनी दबी जबानों से<br />जुगाड़ से हमें दिल जान से मोहब्बत है<br />जुगाड़ ही की बदौलत मियां हकूमत है<br />जहाँ जुगाड़ ने अपना मिजाज़ बदला है<br />नसीब कौम का फूटा समाज बदला है<br />जुगाड़ ही ने बिछाए हैं ढेर लाशों के<br />जुगाड़ ही ने तो छीने हैं लाल माओं के<br />हमें जुगाड़ से जुल्मों सितम मिटाना है<br />खुलूस प्यार मोहब्बत के गुल खिलाना है<br /><br />करो जुगाड़ खुलुसो वफ़ा के दीप जलें<br />करो जुगाड़ कि फिर अमन की हवाएँ चलें<br />करो जुगाड़ के सिर से कोई चादर न हटे<br />करो जुगाड़ के औरत की आबरू न लुटे<br />करो जुगाड़ के हाथों को रोज़गार मिले<br />मेहक उठे ये चमन इक नई बहार मिले<br />करो जुगाड़ नया आसमाँ बनाएँ हम<br />कबूतर अमन के फिर से यहाँ उड़ाएँ हम<br />तो आओ मिले इसी को सलाम करते है<br />जुगाड़ की यही तेहज़ीब आम करते हैं।<br />साभार-sahityakunj.netBahaar Bareilvihttp://www.blogger.com/profile/11037924590776933502noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-232581527173704636.post-86997685607001554722008-03-23T21:13:00.000-07:002008-03-23T21:18:07.064-07:00एक मुसलसल अजाब ले जाना<p><strong><span style="color:#ff0000;">एक मुसलसल अजाब ले जाना<br />मेरी आंखों के ख्वाब ले जाना<br />फासिले जब फरेब देने लगें<br />कुर्बतों के सराब ले जाना<br />लौट आना कभी जो मुमकिन हो<br />और यादों के बाब ले जाना<br />इस से पहले के रुत बदल जाये<br />अपने सारे गुलाब ले जाना<br />तिश्नगी, आस, तीरगी “ज़हिद”<br />कोई तो इजतिराब ले जाना<br />ज़हिद मसूद</span></strong></p>Bahaar Bareilvihttp://www.blogger.com/profile/11037924590776933502noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-232581527173704636.post-69715671403685239922008-03-11T07:18:00.000-07:002008-03-11T07:32:48.565-07:00फरजाना नैना की खूबसूरत गज़लें<div align="center"><strong><span style="font-size:130%;"><span style="color:#cc0000;">ख्वाहिशें होश खोये जाती हैं/</span></span></strong></div><div align="center"><strong><span style="font-size:130%;"><span style="color:#cc0000;">दर्द के बीज बोये जाती हैं /</span></span></strong></div><div align="center"><span class=""></span> </div><div align="center"><strong><span style="font-size:130%;color:#cc0000;">कैसा नशा है सुर्ख फूलों में ,</span></strong></div><div align="center"><strong><span style="font-size:130%;color:#cc0000;">तितलियाँ उन पे सोये जाती हैं/</span></strong></div><div align="center"><strong><span style="font-size:130%;color:#cc0000;"></span></strong> </div><div align="center"><strong><span style="font-size:130%;"><span style="color:#cc0000;">चूड़ियाँ भूले बिसरे बचपन की,</span></span></strong></div><div align="center"><strong><span style="font-size:130%;"><span style="color:#cc0000;">कैसी टी<span class="">सें चुभोये </span>जाती हैं/</span></span></strong></div><div align="center"><strong><span style="font-size:130%;color:#cc0000;"></span></strong> </div><div align="center"><strong><span style="font-size:130%;"><span style="color:#cc0000;">धुप से मैंने भर दिया आँगन </span></span></strong></div><div align="center"><strong><span style="font-size:130%;"><span style="color:#cc0000;">बारिशें फिर भी होए जाती हैं/</span></span></strong></div><div align="center"><strong><span style="font-size:130%;color:#cc0000;"></span></strong> </div><div align="center"><strong><span style="font-size:130%;"><span style="color:#cc0000;">मेरे 'नैना' को हसरतें मेरी </span></span></strong></div><div align="center"><strong><span style="font-size:130%;"><span style="color:#cc0000;">आंसुओं में दुबोये जाती हैं/</span></span></strong></div>Bahaar Bareilvihttp://www.blogger.com/profile/11037924590776933502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-232581527173704636.post-24976671206042307302008-03-11T04:59:00.000-07:002008-03-11T05:15:39.110-07:00फरजाना नैना की खूबसूरत गज़लें<div align="center"><strong><span style="font-size:130%;"><span style="color:#009900;">है ज़रा सा सफर गुज़ारा कर /</span></span></strong></div><div align="center"><strong><span style="font-size:130%;"><span style="color:#009900;">चंद लम्हे फ़क़त गवारा कर /</span></span></strong></div><div align="center"><strong><span style="font-size:130%;"><span style="color:#009900;">धुप में नज्म बादलों पे लिख </span></span></strong></div><div align="center"><strong><span style="font-size:130%;"><span style="color:#009900;">कोई परछाई इस्त'आरा कर /</span></span></strong></div><div align="center"><strong><span style="font-size:130%;"><span style="color:#009900;">छुई मुई की एक पत्ती हूँ </span></span></strong></div><div align="center"><strong><span style="font-size:130%;"><span style="color:#009900;">दूर ही से मेरा नज़ारा कर /</span></span></strong></div><div align="center"><strong><span style="font-size:130%;color:#009900;">आसमानों से रोशनी जैसा,</span></strong></div><div align="center"><strong><span style="font-size:130%;"><span style="color:#009900;">मुझ पे इलहाम एक सितारा कर /</span></span></strong></div><div align="center"><strong><span style="font-size:130%;"><span style="color:#009900;">पहले देखा था जिस मुहब्बत से,</span></span></strong></div><div align="center"><strong><span style="font-size:130%;"><span style="color:#009900;">इक नज़र फिर वही दुबारा कर/</span></span></strong></div><div align="center"><strong><span style="font-size:130%;"><span style="color:#009900;">खो न जाए गुबार में 'नैना' </span></span></strong></div><div align="center"><strong><span style="font-size:130%;"><span style="color:#009900;">मुझ को ए ज़िन्दगी पुकारा कर /</span></span></strong></div><div align="center"><span class=""></span><strong><span style="font-size:130%;color:#009900;"></span></strong></div>Bahaar Bareilvihttp://www.blogger.com/profile/11037924590776933502noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-232581527173704636.post-51269734791946945842008-03-10T00:37:00.000-07:002008-03-10T00:43:01.029-07:00<div align="center"><br /><strong><span style="font-size:130%;"><span style="color:#ff0000;">उसे कहना<br /><br />मुकमल कुछ नहीं होता,<br />मिलन भी नामुकमल है,<br />जुदाई भी अधूरी है,<br />यहाँ इक मौत पूरी है,<br /><br />उसे कहना,<br /><br />उदासी जब रगों में,<br />खून की मानिंद उतरती है,<br />बुहत नुकसान करती है,<br /><br />उसे कहना,<br /><br />बिसाते -ऐ -इश्क में जब मात होती है,<br />दुखों क शहर में जब रात होती है,<br />मुकमल बस खुदा की जात होती है,<br /><br />उसे कहना. </span></span></strong></div>Bahaar Bareilvihttp://www.blogger.com/profile/11037924590776933502noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-232581527173704636.post-30024457965228405382008-02-18T02:30:00.000-08:002008-02-18T02:31:55.858-08:00ज़िंदगी को करीब से देखोग़ज़ल<br />आदमी आदमी को क्या देगा <br />जो भी देगा वही ख़ुदा देगा <br />मेरा कातिल ही मेरा मुनिसफ़ है<br />क्या मेरे हक में फ़ैसला देगा<br />ज़िंदगी को करीब से देखो<br />इसका चेहरा तुम्हें रुला देगा<br />हमसे पूछो ना दोस्ती का सिला<br />दुश्मनों का भी दिल हिला देगा<br />-सुदर्शन फ़ाकिरBahaar Bareilvihttp://www.blogger.com/profile/11037924590776933502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-232581527173704636.post-19416235231080088432008-02-16T07:16:00.000-08:002008-02-16T07:23:08.673-08:00जां निसार अख्तर के चुनिंदा अशआर<strong><span style="color:#000099;">अश्आर मिरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं<br />कुछ शे’र फ़क़त उनको सुनाने के लिए हैं<br /><br />ये इल्म का सौदा, ये रिसाले, ये किताबें<br />इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं<br />----- ----- ------<br />ज़िन्दगी ये तो नहीं, तुझको सँवारा ही न हो<br />कुछ न कुछ हमने तिरा क़र्ज़ उतारा ही न हो<br /><br />कू-ए-क़ातिल1 की बड़ी धूम है चलकर देखें<br />क्या ख़बर, कूचा-ए-दिलदार से प्यारा ही न हो<br /><br />शर्म आती है कि उस शहर में हम हैं कि जहाँ<br />न मिले भीक तो लाखों का गुज़ारा ही न हो<br />----- ----- ------<br />इसी सबब से हैं शायद, अज़ाब1 जितने हैं<br />झटक के फेंक दो पलकों पे ख़्वाब जितने हैं<br /><br />वतन से इश्क़, ग़रीबी से बैर, अम्न से प्यार<br />सभी ने ओढ़ रखे हैं नक़ाब जितने हैं<br /><br />समझ सके तो समझ ज़िन्दगी की उलझन को<br />सवाल उतने नहीं है, जवाब जितने हैं /</span></strong>Bahaar Bareilvihttp://www.blogger.com/profile/11037924590776933502noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-232581527173704636.post-37836025468948113462008-02-15T07:16:00.000-08:002008-02-15T07:17:37.906-08:00कभी फुरसत मिले तो फातहा पढनें चले आनातुम्हारी कब्र पर मैं<br />फ़ातेहा पढ़ने नही आया,<br /><br /><br /><br />मुझे मालूम था, तुम मर नही सकते<br />तुम्हारी मौत की सच्ची खबर<br />जिसने उड़ाई थी, वो झूठा था,<br />वो तुम कब थे?<br />कोई सूखा हुआ पत्ता, हवा मे गिर के टूटा था ।<br /><br /><br /><br />मेरी आँखे<br />तुम्हारी मंज़रो मे कैद है अब तक<br />मैं जो भी देखता हूँ, सोचता हूँ<br />वो, वही है<br />जो तुम्हारी नेक-नामी और बद-नामी की दुनिया थी ।<br /><br /><br /><br />कहीं कुछ भी नहीं बदला,<br />तुम्हारे हाथ मेरी उंगलियों में सांस लेते हैं,<br />मैं लिखने के लिये जब भी कागज कलम उठाता हूं,<br />तुम्हे बैठा हुआ मैं अपनी कुर्सी में पाता हूं |<br /><br /><br /><br />बदन में मेरे जितना भी लहू है,<br />वो तुम्हारी लगजिशों नाकामियों के साथ बहता है,<br />मेरी आवाज में छुपकर तुम्हारा जेहन रहता है,<br />मेरी बीमारियों में तुम मेरी लाचारियों में तुम |<br /><br /><br /><br />तुम्हारी कब्र पर जिसने तुम्हारा नाम लिखा है,<br />वो झूठा है, वो झूठा है, वो झूठा है,<br />तुम्हारी कब्र में मैं दफन तुम मुझमें जिन्दा हो,<br />कभी फुरसत मिले तो फातहा पढनें चले आनाBahaar Bareilvihttp://www.blogger.com/profile/11037924590776933502noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-232581527173704636.post-62546798390459547472008-02-13T07:57:00.000-08:002008-02-13T07:58:39.576-08:00ग़रीबी ने किया कड़का, नहीं तो चाँद पर जाताग़रीबी ने किया कड़का, नहीं तो चाँद पर जाता <br />तुम्हारी माँग भरने को सितारे तोड़कर लाता<br /><br />बहा डाले तुम्हारी याद में आँसू कई गैलन<br />अगर तुम फ़ोन न करतीं यहाँ सैलाब आ जाता<br /><br />तुम्हारे नाम की चिट्ठी तुम्हारे बाप ने खोली <br />उसे उर्दू जो आती तो मुझे कच्चा चबा जाता <br /><br />तुम्हारी बेवफाई से बना हूँ टाप का शायर<br />तुम्हारे इश्क में फँसता तो सीधे आगरा जाता<br /> <br />ये गहरे शे’र तो दो वक़्त की रोटी नहीं देते <br />अगर न हास्य रस लिखता तो हरदम घास ही खाता <br /><br />हमारे चुटकुले सुनकर वहाँ मज़दूर रोते थे <br />कि जिसका पेट खाली हो कभी भी हँस नहीं पाता<br /> <br />मुहब्बत के सफर में मैं हमेशा ही रहा वेटिंग<br />किसी का साथ मिलता तो टिकट कन्फर्म हो जाता <br /><br />कि उसके प्यार का लफड़ा वहाँ पकड़ा गया वर्ना<br />नहीं तो यार ये क्लिंटन हज़ारों मोनिका लाताBahaar Bareilvihttp://www.blogger.com/profile/11037924590776933502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-232581527173704636.post-53365867258104156122008-02-13T07:15:00.000-08:002008-02-13T07:55:52.781-08:00रोज़ कुछ टाइम निकालो मुस्कराने के लिएमसखरा मशहूर है, आँसू छिपाने के लिए<br />बाँटता है वो हँसी, सारे ज़माने के लिए<br />ज़ख्म सबको मत दिखाओ, लोग छिड़केंगे नमक<br />आएगा कोई नहीं मरहम लगाने के लिए<br />देखकर तेरी तरक्की, खुश नहीं होगा कोई<br />लोग मौका ढूँढ़ते हैं काट खाने के लिए<br />फलसफा कोई नहीं है और न मकसद कोई<br />लोग कुछ आते जहाँ में, हिनहिनाने के लिए<br />मिल रहा था भीख में सिक्का मुझे सम्मान का<br />मैं नहीं तैयार था झुककर उठाने के लिए<br />ज़िन्दगी में गम बहुत हैं, हर कदम पर हादसे<br />रोज़ कुछ टाइम निकालो मुस्कराने के लिएBahaar Bareilvihttp://www.blogger.com/profile/11037924590776933502noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-232581527173704636.post-31003507488767477212008-02-13T07:07:00.000-08:002008-02-13T07:15:35.019-08:00मैं सियासत में चला जाऊं तो नंगा हो जाऊं<p>मेरी ख़्वाहिश है कि फिर से मैं फ़रिश्ता हो जाऊं<br />माँ से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊं<br />कम-से कम बच्चों के होठों की हंसी की ख़ातिर<br />ऎसी मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊं<br />सोचता हूं तो छलक उठती हैं मेरी आँखें<br />तेरे बारे में न सॊचूं तो अकेला हो जाऊं<br />चारागर तेरी महारथ पे यक़ीं है लेकिन<br />क्या ज़ुरूरी है कि हर बार मैं अच्छा हो जाऊं<br />बेसबब इश्क़ में मरना मुझे मंज़ूर नहीं<br />शमा तो चाह रही है कि पतंगा हो जाऊं<br />शायरी कुछ भी हो रुसवा नहीं होने देती<br />मैं सियासत में चला जाऊं तो नंगा हो जाऊं<br />"http://hi.literature.wikia.com/से लिया गया</p>Bahaar Bareilvihttp://www.blogger.com/profile/11037924590776933502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-232581527173704636.post-15277712827291409142008-02-08T04:17:00.000-08:002008-02-08T04:39:26.388-08:00मुहब्बत काम अपना कर ही जाती है “खुमार” अक्सर<p><strong><span style="color:#3333ff;">मिले हैं एहतियातन उन से हम बे-गानावार अक्सर<br />अदा करना पडा है ये भी फ़र्ज़-ए-नागवार अक्सर<br />खताएं करते करते तौबा कर ली है “खुमार” अक्सर<br />तड़प कर रह गयी है रहमत-ए-परवरदिगार अक्सर<br />वो यूं आये हैं मेरे सामने बे-इख्तियार अक्सर<br />मुझे करना पडा है आप अपना इंतिज़ार अक्सर<br />बडी मुश्किल से दिल मायूस होता है मुहब्बत में<br />किया है मैं ने एक पैमां-शिकन का ऐतबार अक्सर<br />जो कांटे बन के खटके हैं दिलों में अहल-ए-गुलशन के<br />बढाया है उन्हीं काँटों ने गुलशन का विकार अक्सर<br />ज़माना हो गया तर्क-ए-मुहब्बत को मगर अब तक<br />मुहब्बत काम अपना कर ही जाती है “खुमार” अक्सर<br /></span></strong></p>Bahaar Bareilvihttp://www.blogger.com/profile/11037924590776933502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-232581527173704636.post-62826403110204772022008-01-29T02:30:00.000-08:002008-01-29T02:39:54.531-08:00तू इस कदर मुझे अपने क़रीब लगता हैतू इस कदर मुझे अपने क़रीब लगता है<br />तुझे अलग से जो सोचूँ, अजीब लगता है<br /><br />जीसे न हुस्न से मतलब न इश्क से सरोकार<br />वो शक्ष मुझ को बहुत बाद-नसीब लगता <span class=""></span><br /><span class=""></span><br />हुदूद-ए-जात से बाहर निकल के देख ज़रा<br />न को’ई घिर, न को’ई रकीब लगता है<br /><br />ये दोस्ती, ये मरासिम, ये चाहतें ये खुलूस<br />कभी कभी ये सब कुछ अजीब लगता <span class="">है<br /></span><br />उफक पे दूर चमकता हवा को’ई तारा<br />मुझे चराघ-ए-दयार-ए-हबीब लगता <span class="">है<br /></span><br />न जाने कब को’ई तूफ़ान अय गा यारों<br />बुलंद मौज से साहिल क़रीब लगता हैBahaar Bareilvihttp://www.blogger.com/profile/11037924590776933502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-232581527173704636.post-24717117937827496942008-01-29T02:26:00.000-08:002008-01-29T02:29:56.766-08:00शोला-ए-इश्क बुझाना भी नहीं चाहता हैशोला-ए-इश्क बुझाना भी नहीं चाहता है<br />वो मगर खुद को जलाना भी नहीं चाहता है<br /><br />उस को मंजूर नहीं है मिरी गुमराही भी,<br />और मुझे राह पे लाना भी नहीं चाहता है<br /><br />सैर भी जिस्म के सेहरा की खुश आती है मगर,<br />देर तक ख़ाक उडाना भी नहीं चाहता है<br /><br />कैसे उस शख्स से ताबीर पे इसरार करें<br />जो कोई ख्वाब दिखाना भी नहीं चाहता हैBahaar Bareilvihttp://www.blogger.com/profile/11037924590776933502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-232581527173704636.post-70897780820213356602008-01-20T01:00:00.000-08:002008-01-26T02:05:23.094-08:00लब पे आती है दुआलब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी<br /> जिंदगी शम्मा की सूरत हो खुदाया मेरी<br /><span class=""></span><br /><span class=""></span>दुनीया का मेरे दम अन्धेरा हईओ जाये<br />हर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाये<br /><br />हो मेरे दम से यूही मेरे वतन की जीनत<br /> जिस तरह फूल से होती है चमन की जीनत<br /><br />जिंदगी हो मेरी परवाने की सूरत या रब<br /> इल्म की शम्मा से हो मुझको मोहब्बत या रब<br /><br />हो मेरा काम गरीबो की हिमायत करना<br />दर्द मंदों से ज़ईफों से मोहब्बत करना<br /><br />मेरे अल्लाह बुराई से बचाना मुझको<br />नेक जो राह हो उस राह पे चलाना मुझकोBahaar Bareilvihttp://www.blogger.com/profile/11037924590776933502noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-232581527173704636.post-19396853429837055182008-01-20T00:54:00.000-08:002008-01-26T02:08:35.910-08:00शायर' उन की दोस्ती<strong><span style="color:#3333ff;">हर क़दम पर नित नए सानचे मे ढल जाते है लोग<br />देखते ही देखते कितने बदल जाते हें <span class="">लोग</span><br /><br />किस लिए कीजे किसी गमगश्ता जन्नत की तलाश<br />जब कि मिट्टी के खिलोने से बहल जाते है लोग<br /><br />कितने सादा दिल है.नज्द अब भी सुन के आवाज़-ए-जरस<br />पेश-ओ-पास से बेखबर घर से निकल जाते हें लोग<br /><br />शमा की मानिंद अहल-ए-अंजुमन से बेनियाज़<br />अक्सर अपनी आग में चुप-चाप जल जाते है लोग '<br /><br />शायर' उन की दोस्ती का अब भी दम भरते है. आप<br />ठोकरे.खा कर तो सुनते है.संभल जाते है.लोग</span></strong>Bahaar Bareilvihttp://www.blogger.com/profile/11037924590776933502noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-232581527173704636.post-23017617030408879782008-01-09T01:06:00.000-08:002008-01-09T01:09:04.402-08:00निदा फाजली<strong>दिन सय्यारा, तन बंजारा क़दम क़दम दुश्वारी है<br />जीवन जीना सहल न जानो, बोहत बड़ी फनकारी है </strong><br /><strong>औरों जैसे हो कर भी हम बा-इज्ज़त हैं बस्ती में<br />कुछ लोगों का सीधापन है, कुछ अपनी अय्यारी है </strong><br /><strong>जब जब मौसम झूमा हमने कपडे फाड़े शोर कियाहर मौसम शाएस्ता रहना कोरी दुनियादारी हैऐब नहीं है इसमें कोई लाल परी न फूल गलीयह मत पूछो वो अच्छा है या अच्छी नादारी हैजो चेहरा देखा वो तोडा नगर नगर वीरान कियेपहले औरों से नाखुश थे अब खुद से बेज़ारी है<br />निदा फाजली<br /></strong>Bahaar Bareilvihttp://www.blogger.com/profile/11037924590776933502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-232581527173704636.post-40643958364116517312008-01-06T05:24:00.000-08:002008-01-06T05:26:48.375-08:00एक ग़ज़ल<strong><span style="color:#3333ff;">मँझधार में ना छोड़ के जाने की बात कर,<br />झूठा ही सही प्यार निभाने की बात कर।</span></strong><br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">किसने निभाई दोस्ती किसने दगा दिया,<br />तू अपनी बात कर, ना जमाने की बात कर.<br />माणा कि बड़ी मुश्किलें हैं सामने तेरे,<br />जैसे भी सही रब्त निभाने की बात कर।</span></strong><br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">मस्जिद की बात कर ना शिवाले की बात कर,<br />एक ताजमहल और बनाने की बात कर।</span></strong><br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">गीता-कुरान-बाइबिल वो आप पढ़ेगा,<br />बच्चे को अपने प्यार पढ़ाने की बात कर।</span></strong><br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">रातों की ओर देख ना तारों की ओर देख,<br />रुखसार से बस जुल्फ हटाने की बात कर।</span></strong><br /><strong><span style="color:#3333ff;"></span></strong><br /><strong><span style="color:#3333ff;">जाति के भेदभाव के मसले निकाल दे,</span></strong><br /><strong><span style="color:#3333ff;">'संजय' दिलों में प्यार जगाने की बात कर।</span></strong><br /><strong><span style="color:#3333ff;"></span></strong><br /><strong><span style="color:#3333ff;"></span></strong><br /><strong><span style="color:#3333ff;"></span></strong><br /><strong><span style="color:#3333ff;"></span></strong>Bahaar Bareilvihttp://www.blogger.com/profile/11037924590776933502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-232581527173704636.post-33741525582894613852008-01-05T22:46:00.000-08:002008-01-05T22:55:48.745-08:00मेरी पसंद-<strong><span style="color:#3333ff;">मासूम मोहब्बत का बस इतना सा फ़साना है,<br />कागज़ कि हवेली है, बारिश का ज़माना है,<br /><br />क्या शर्त-ए-मोहब्बत है, क्या शर्त-ए-ज़माना है,<br />आवाज़ भी ज़ख्मी है, और गीत भी गाना है,<br /><br />उस पार उतरने कि उम्मीद बहोत कम है,<br />कश्ती भी पुरानी है, तूफ़ान को भी आना है,<br /><br />समझे या न समझे वो अंदाज़ मोहब्बत के,<br />एक शक्स को आखों से, एक शेर सुनाना है,<br /><br />भोली सी अदा,कोई फिर इश्क कि जिद्द पर है,<br />फिर आग का दरिया है, और डूब के जान है।</span></strong>Bahaar Bareilvihttp://www.blogger.com/profile/11037924590776933502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-232581527173704636.post-6827209752692448742008-01-03T03:40:00.000-08:002008-01-03T03:45:28.399-08:00कविता - क्या कहा<a href="http://3.bp.blogspot.com/_Bx6dxwKdnYI/R3zKjzZ5ElI/AAAAAAAAAEI/29dB3VG5vrY/s1600-h/kya_kaha.gif"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5151214790248043090" style="CURSOR: hand" alt="" src="http://3.bp.blogspot.com/_Bx6dxwKdnYI/R3zKjzZ5ElI/AAAAAAAAAEI/29dB3VG5vrY/s320/kya_kaha.gif" border="0" /></a><br /><div><a href="http://1.bp.blogspot.com/_Bx6dxwKdnYI/R3zKETZ5EkI/AAAAAAAAAEA/HkOK7BZQo5I/s1600-h/kya_kaha.gif"></a></div>Bahaar Bareilvihttp://www.blogger.com/profile/11037924590776933502noreply@blogger.com0