Counter Stats

Saturday, December 29, 2007

 

कविता -नये साल की शान में

गयी शाम का रतजगा सरदी ताबेदार
नये साल की शान में एक और त्यौहार

तितली जैसे उड़ रहे सजे रिबन रंगीन
गुब्बारों की ओट में हर बंदा संगीन

खड़ी दूब मोती लिये धूप दुशाला र्गम
सुबह सिंदूरी सी लगे नये साल के संग

कोहरा पहने ऋतु चढ़ी मौसम का दरबार
नया साल कहने लगा आदार्बज सरकार

पिछला संवत चल दिया अपनी लाठी टेक
नया र्बफ सा कुरकुरा;, मूंगफली सा नेक

गमले भर गुलदावदी क्यारी भरे गुलाब
आसमान कोहरा भरा ठंड उमगता माघ

दिशा दिशा में दीप रख द्वारे बंदनवार
नया साल खुशिया< भरे र्सदी हो गुलनार

पूर्नीमा वर्मन

 

कविता - नए वर्ष में नई पहल हो।

नए वर्ष में नई पहल हो।
कठिन ज़िंदगी और सरल हो।।

अनसुलझी जो रही पहेली।
अब शायद उसका भी हल हो।।

जो चलता है वक्त देखकर।
आगे जाकर वही सफल हो।।

नए वर्ष का उगता सूरज।
सबके लिए सुनहरा पल हो।।

समय हमारा साथ सदा दे।
कुछ ऐसी आगे हलचल हो।।

सुख के चौक पुरें हर द्वारे।
सुखमय आँगन का हर पल हो।।

सजीवन मयंक

 

अब के सालअब के साल

अब के कुछ ऐसा करना
अपने पीछले १२ माह के
दुःख सुख का अंदाजा करना
बिसरी यादें ताज़ा करना

सादः सा इक कागज़ ले कर
भूले बिसरे पल लिख लेना
अपने सारे कल लिख लेना

सारे दोस्त इखट्टे करना
सारी सुबहें हजीर रखना
सारी शामें पास बुलाना

और अलावा इन के देखो
सारे मौसम ध्यान में रखना
इक इक याद गुमान में रखना

फिर मोह्तात कयास लगना
गर तो खुश्याँ बढ़ जाती हें
तो फिर तुम को मेरी तरफ से
आने वाला ~साल मुबारक~

और अगर गम बढ़ जाएँ तो
मत बेकार तकल्लुफ़ करना
देखो फिर तुम ऐसा करना

"मेरी खुश्याँ तुम ले लेना
मुझ को अपने गम दे देना "



 

एय नए साल

एय नए साल बता तुझ मैं नया क्या है
हर तरफ खल्क ने क्यों शोर मचा रखा है
रौशनी दिन को वोही तारों भर रात वोही
आज हम को नज़र अति है हर बात वो ही
आसमान बदला है न अफ़सोस बदली है ज़मीन
एइक हिंद्सेय का बदलना कोई जिद्दत तो नही
अगले बरसों कि तरह होंगे करीने तेरे
किसी मालूम नही बारा महीने तेरे
जनुँरी,फ़रवरी,और मार्च मैं परेग्य सर्दी
और अप्रिल,मई,जून मैं होगी गर्मीईई
तेरा सुने देहर मैं कुछ खोयेगा कुछ पायेगा
अपनी मियाद बसर कर के चला जायेगा'
तू नया है तो दिखा सुबह नयी,शाम नईए
वरना इन आँखों ने देखे हें साल कई!!
और भी बेसबब देते हें क्यू लोग मुबराक्बदें!!
गालिबन भूल गए वक़्त कि कार्वी यादें!
तेरी आमद से घटती उमर जहाँ मैं सब कि!!
फैज़ ने लिखी हे ये नज़म निराली ढब कीई!

Friday, December 28, 2007

 

नये साल पर - कुछ

नया साल सूरज नया ले के आए

न हो जंग दुनीया में; कायम अमन हो;
कि लौटे बहारें;, हरा फिर चमन हो
जहां में हो खुशियां;, कहीं पर न ग़म हो
ये सारी ही धरती हमारा वतन हो;,
कि भूलें हम आपस की अनबन;, ये झगड़े
नया साल हमको सबक ये सिखाए।
न हों इस जहां में सितमगर ज़फाएं;,

न हों र्गम आंसू;, न हों र्सद आहें
न मजबूर दिल हो;, न बेबस निगाहें
नई मंज़्िालें हों;, नई अब हो राहें;,
नई हो ये धरती;, नया आसमां हो
नया साल दुनिया नई ले के आए।

न बिकता हो इन्सान पैसे के बदले;,
न बिकता हो ईमान पैसे के बदले
न बिकती हो इज़्ज़त;, न बिकती हो अस्मत
न बिकता हो भगवान पैसे के बदले;,
न फिरता हो इन्सां मुखौटे लगाए
नया साल इन्सां को इन्सां बनाए

 

नए साल पर -कुछ

एक ब्राह्मण ने कहा है के ये साल अच्छा है

ज़ुल्म की रात बहुत जल्द टलेगी अब तो
आग चूल्हों.नज्द मी.नज्द हर इक रोज़ जलेगी अब तो

भूक के मारे को_ बच्चा नही.नज्द रोयेगा
चैन की नी.नद हर इक शख्स यहाँ.नज्द सोयेगा

.न्धी नफ़रत की चलेगी कही.नज्द अब के बरस
प्यार की फसल उगा_एगी जामी.नज्द अब के बरस

है यही.नज्द अब को_ शोर-शराबा होगा
ज़ुल्म होगा कही.नज्द खून-खराबा होगा

ओस और धूप के सदमे.नज्द सहेगा को_
अब मेरे देश मी.नज्द बेघर रहेगा को_

नए वादों.नज्द का जो डाला है वो जाल अच्छा है
रहनुमाओं.नज्द ने कहा है के ये साल अच्छा है

दिल के खुश रखने को गालिब ये ख़याल अच्छा


वो चुपके चुपके आए नये साल की तरह।
फिर सबके मन को भाये नये साल की तरह।।

पहले भी कई बार ज़ख्म दे चले गए
फिर नये ख्वाब लाए नये साल की तरह।।

जब-जब बुलाया हमने तो देखा नहीं मुड़कर
अब आए बिन बुलाए नये साल की तरह।।

हँस-हँस के तुम्हें कैसे पीहर बिदा करूँ
फिर कोई नया आए नये साल की तरह।।

आने को तो आने में नहीं ज़रा भी अडचन
स्वागत कोई कराए नये साल की तरह।।

मन में लिए विश्वास रखें दिल में भरोसा
आओ खुशी मनाएं नये साल की तरह।।

-शास्त्री नित्यगोपाल कटारे


Thursday, December 27, 2007

 

मेरी पसंद- निदा फाज़ली

- निदा फ़ाजली

बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी मां

याद आती है चौका बासन, चिमटा फुकनी जैसी मां

चिड़ियों की चहकार में गूंजे राधामोहन अली अली

मुर्ग़े की आवाज़ से खुलती घर की कुंडी जैसी मां

बान की खुर्री खाट के ऊपर हर आहट पर कान धरे

आधी सोई आधी जागी भरी दोपहरी जैसी मां

बीवी, बेटी, बहिन, पड़ोसन थोड़ी-थोड़ी सी सबमें

दिन भर इक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी मां

बांट के अपना चेहरा, माथा, आँखें जाने कहाँ गयी

फटे पुराने इक एलबम में चंचल लड़की जैसी मां


 

मेरी पसंद - कुंवर बेचैन

दो चार बार हम जो कभी हँस-हँसा लिए
सारे जहाँ ने हाथ में पत्थर उठा लिए

रहते हमारे पास तो ये टूटते जरूर
अच्छा किया जो आपने सपने चुरा लिए

चाहा था एक फूल ने तड़पे उसी के पास
हमने खुशी के पाँवों में काँटे चुभा लिए

सुख, जैसे बादलों में नहाती हों बिजलियाँ
दुख, बिजलियों की आग में बादल नहा लिए

जब हो सकी न बात तो हमने यही किया
अपनी गजल के शेर कहीं गुनगुना लिए

अब भी किसी दराज में मिल जाएँगे तुम्हें
वो खत जो तुम्हें दे न सके लिख लिखा लिए।

- कुँअर बेचैन


 

नए साल पर - कुछ

गुनगुनाते रहें गीत गाते रहें
हम नए साल में मुस्कुराते रहें

खूं के छींटे कहीं भी दिखाई न दें
हम जहां भी रहें खिलखिलाते रहें

चांद निकले तो सहमे न अबके बरस
रोज़्ा हम चांदनी में नहाते रहें

लाख आंधी चले नफ्रतों की कहीं
प्यार की पौध को हम बचाते रहें

ज़्िांदगी के सफर में कोई भी मिले
हम उसे अपना हमदम बनाते रहें

घर किसी का न डूबे अंधेरों में अब
हम हर इक घर में दीपक जलाते रहें

ठोेकरों की हमें कोई परवा न हो
जो गिरे हम उसी को उठाते रहें

इस ज़्ामाने से घायल न घबराएं हम
गीत;, गज़्ालों की महफ़िल सजाते रहें

आर;.पी;.घायल

Wednesday, December 26, 2007

 

मेरी पसंद-राहत

कुछ शेर (राहत इन्दौरी)
तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो
फूलों की दुकानें खोलो, खुशबू का व्यापार करो
इश्क खता है तो, ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो
किसने दस्तक दी, दिल पे, ये कौन है
आप तो अन्दर हैं, बाहर कौन है
कभी दिमाग, कभी दिल, कभी जिगर में रहो
ये सब तुम्हारे ही घर हैं, किसी भी घर में रहो
जुबां तो खोल, नजर तो मिला, जवाब तो दे
मैं कितनी बार लुटा हूँ, हिसाब तो दे
तेरे बदन की लिखावट में है उतार चढ़ाव
मैं तुझको कैसे पढ़ूं, मुझे किताब तो दे
ये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था
मैं बच भी जाता तो एक रोज मरने वाला था
मेरा नसीब, मेरे हाथ कट गए वरना
मैं तेरी माँग में सिन्दूर भरने वाला था
जाके कोई कह दे, शोलों से, चिंगारी से
फूल इस बार खिले हैं, बड़ी तैयारी से
बादशाहों से भी फेंके हुए सिक्के न लिए
हमने खैरात भी मांगी है तो खुद्दारी से
ग़ज़ल (राहत इन्दौरी)

आज हम दोनों को फुरसत है, चलो इश्क करें
इश्क दोनों की जरूरत है, चलो इश्क करें
इसमें नुकसान का खतरा ही नहीं रहता है
ये मुनाफ़े की तिजारत है, चलो इश्क करें
आप हिन्दू, मैं मुसलमाँ, ये ईसाई, वो सिख
यार छोड़ो ये सियासत है, चलो इश्क करें
ग़ज़ल (राहत इन्दौरी)
अंगुलियां यूँ न सब पर उठाया करो
खर्च करने से पहले कमाया करो
जिन्दगी क्या है, खुद ही समझ जाओगे
बारिशों में पतंगें उड़ाया करो
शाम के बाद जब तुम सहर देख लो
कुछ फ़कीरों को खाना खिलाया करो
दोस्तों से मुलाकात के नाम पर
नीम की पत्तियाँ चबाया करो
चाँद-सूरज कहाँ, अपनी मंजिल कहाँ
ऐसे वैसों को, मुँह न लगाया करो
घर उसी का सही, तुम भी हकदार हो
रोज आया करो, रोज जाया करो
ग़ज़ल (राहत इन्दौरी
)
रोज तारों की नुमाइश में खलल पड़ता है
चाँद पागल है, अंधेरे में निकल पड़ता है
उसकी याद आई, साँसों जरा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में खलल पड़ता है
समन्दरों के सफर में हवा चलाता है
जहाज खुद नहीं चलता, खुदा चलाता है
तुझको खबर नहीं, मेले में घूमने वाले
तेरी दूकान कोई दूसरा चलाता है
ये लोग पाँव नहीं, जहन से चलते हैं
उधर चलेंगे जिधर रहनुमा चलाता है
ग़ज़ल (राहत इन्दौरी)
बीमार को मरज की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ, पिला देनी चाहिए
अल्लाह बरकतों से नवाजेगा इश्क में
है जितनी पूंजी पास, लगा देनी चाहिए
मैं ताज हूँ तो, ताज को सर पर संवारें लोग
मैं खाक हूँ तो खाक उड़ा देनी चाहिए
ग़ज़ल (राहत इन्दौरी)
उसकी कत्थई आँखों में है, जन्तर-मन्तर सब
चाकू-वाकू, छुरियाँ-वुरियाँ, खंजर-वंजर सब
जिस दिन से तुम रूठी, मुझसे रूठे-रूठे हैं
चादर-वादर, तकिया-वकिया, बिस्तर-विस्तर सब
मुझसे बिछड़ कर वो कहाँ पहले जैसी है
ढीले पड़ गए कपड़े-वपड़े, जेवर-वेवर सब
आखिर मैं किस दिन डूबूँगा, फिकरें करते हैं
दरिया-वरिया, कश्ती-वश्ती, लंगर-वंगर सब

 

मेरी पसंद- मुनव्वर राणा

प्रख्यात शायर मनव्वर राना के कुछ शेर
हमारे फन की बदौलत हमें तलाश करे
मजा तो जब है कि शोहरत हमें तलाश करे

का कोई शेर ग़ज़ल में नहीं रखा
हमने किसी लौंडी को महल में नहीं रखा
मिट्टी का बदन कर दिया मिट्टी के हवाले
मिट्टी को किसी ताजमहल में नहीं रखा
ये सर बुलन्द होते ही शाने से कट गया
मैं मोहतरम हुआ तो जमाने से कट गया
माँ आज मुझको छोड़ गाँव चली गई
मैं आज अपने आईनाखाने से कट गया
जूड़े की शान बढ़ गई महफिल महक उठी
मगर ये फूल अपने घराने से कट गया
इस पेड़ से किसी को शिकायत न थी मगर
ये पेड़ सिर्फ बीच में आने से कट गया
आलमारी से पुराने खत उसके निकल आए
फिर से मेरे चेहरे पर ये दाने निकल आए
माँ बैठ के तकती थी जहाँ से मेरा रस्ता
मिट्टी हटाते ही खजाने निकल आए
उदास रहने को अच्छा नहीं बताता है
कोई भी जहर को मीठा नहीं बताता है
कल अपने आप को देखा था माँ की आँखों में
ये आईना हमें बूढ़ा नहीं बताता है
मैं ने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना
मुफलिसी पासे शराफत नहीं रहने देगी
ये हवा पेड़ सलामत नहीं रहने देगी
कुछ नहीं होगा तो आँचल में छुपा लेगी मुझे
माँ कभी सर पे खुली छत नहीं रहने देगी
ये देख कर पतंगें भी हैरान हो गईं
अब तो छतें भी हिन्दू-मुसलमान हो गईं

 

नया साल - मेरी नज़र से

साल हमने बहुत सोचा विचारा;,
यहां तक कि अपना सर तक दीवार पे दे मारा
बहुतों से पूछा;, बहुतों ने बताया;,
फिर भी यह रहस्य समझ में नहीं आया
कि कल और आज में अंतर क्या है
आखि़र इस नए साल में क्या नया है
वही रोज़ की मारामारी
जीवन जीने की लाचारी
बढ़ती हुई मंहगाई
सरकार की सफाई
राशन की लाइन

ट्राफिक का फाइन
गृहस्थी की किचकिच
आफिस की खिचखिच
सड़कों के गढ्ढे
नेताओं के फड्डे
लेफ्ट की चाल
बेटी की ससुराल
मुर्गी या अंडा
अमरीका का फंडा
खून का स्वाद
र्धम का उन्माद
एक सा अख़बार
फिर मर गए चार
राष्टगान का अपमान
मेरा भारत महान
आज भी है वही जूता लात
न हम बदले हैं;, न हालात
सिर्फ सफ़ेद हो गए चार बाल
क्या इस लिए मनाएं नया साल
अभी हमारा मन
इस चक्कर से नहीं था निकल पाया
तभी हमारा बेटा हमारे पास आया
बोला पापा क्या आप
इस साल भी रोज़ आफिस से लेट आओगे
हमारे साथ बिल्कुल टाइम नहीं बिताओगे
और आके सारा टाइम सिर्फ टीवी निहारोगे
आफिस का सारा गुस्सा भी घर पर उतारोगे
सच कहूं
जो साथ ले के चलते हैं दुनिया के ग़म
उनकी उम्र हो जाती है दस साल कम
क्या फर्क पड़ता है कि क्या होगा कल
खुश रहो आज जियो हर पल
जानते हैं मैंने ये पिटारा क्यों खोला है
क्योंकि चार दिन हो गए;,
आपने मुझे अभी तक हैप्पी न्यू इयर नहीं बोला है
तब हमें ये समझ में आया
कि कुछ बदलने के लिए;, हर पल मनाना बहुत ज़रूरी है
और हर खुशी बिना अपनों के साथ के अधूरी है
सो इस लिए आप को विश करता हूं डियर
र्नववष की शुभकामनाएं;, हैप्पी न्यू इयर

तुकतुक


 

मेरी पसंद-कुंवर बेचैन

उन्गलीयाँ थाम के खुद चलना सीखाया था जीसे
राह में छोड़ गया राह पे लाया था जीसे

उसने पोंछे ही नहीं अश्क मेरी आंखों से

मैने खुद रो के बहुत देर हंसाया था जीसे

छू के होंठों को मेरे मुझसे बहुत दूर गयी

वो ग़ज़ल मैने बड़े शौक से गाया था जीसे

मुझसे नाराज़ है इक शख़्स का नकली चेहरा

धूप में आइना इक रोज़ दिखाया था जीसे

अब बड़ा हो के मेरे सर पे चढ़ा आता है
अपने कांधे पे कुंअर हंस के बिठाया था जीसे

 

मेरी पसंद - कुंवर बैचैन

मत पूछिये

मत पूछिये कि कैसे सफर काट रहे
सांस एक सज़ा है मगर काट रहे

ख़ामोश आसमान के साये में बार
अपनी तमन्नाओं का सर काट रहे है

कमजोर छत से आज भी एक ईंट गिरी

लोग हैं कि फिर भी ग़दर काट रहे हैं

आधी हमारी जीभ तो दांतों ने काट

बची को मौन अधर काट रहे हैं

दो चार हादसों से ही अखबार भर
अपनी उदासी की खबर काट रहे हैं

हर गांव पूछता है मुसाफिर को रोक कर

हमने सुना है हमको नगर काट रहे हैं

इतनी ज़हर से दोस्ती गहरी हुई कि हम

ओझा के मंत्र का ही असर काट रहे हैं

कुछ इस तरह के हमको मिले हैं बहेलिये
जो हमको उड़ाते हैं न पर काट रहे हैं

Tuesday, December 25, 2007

 

मेरी पसंद - वसीम बरेलवी

आते आते मेरा नाम सा रह गया

उस के होन्ठो पे कुछ कान्पता रह गया


वो मेरे सामने ही गया और मैं

रास्ते की तरह देखता रह गया


झूठ वाले कही से बढ़ गए

और मैं था कि सच बोलता रह गया


आन्धियोके इरादे तो अच्छे न थे

ये दिया कैसे जलता हुआ रह गया

 

मेरी पसंद - राहत इन्दोरी

हर एक चहरे को ज़ख्मों का आईना न कहो
ये जिंदगी तो है रहमत इसे सज़ा न कहो

न जाने कौन सी मजबूरियों का कैदी हो
वो साथ छोड़ गया है तो बेवफा न कहो

तमाम शहर ने नेजों पे क्यूँ उछाला मुझे
ये इत्तेफाक था तुम इस को हादसा न कहो

ये और बात के दुश्मन हुआ है आज मगर
वो मेरा दोस्त था कल तक उसे बुरा न कहो

हमारे ऐब हमें उंगलियों पे गिन्वाओ
हमारी पीठ के पीछे हमें बुरा न कहो

मैं वाकियात की जंजीर का नहीं कायल
मुझे भी अपने गुनाहों का सिलसिला न कहो

ये शहर वो है जहाँ राक्षस भी है "राहत"
हर एक तराशे हुए बुत को देवता न कहो

 

मेरी पसंद- साहिर

तुम ने कितने सपने देखे, में ने कितने गीत बुने
इस दुनिया के शोर में लेकिन दिल की धरकन कौन सुने

सरगम की आवाज़ पे सर धुनने वाले लाखों पाए
नगमो की खिलती कलियाँ चुनने वाले लाखों पाए

राख हुआ दिल जिन में जल कर वो अंगारे कौन चुने
तुम ने कितने सपने देखे, मैं ने कितने गीत बुने

अरमानों के सूने घर में हर आहट बे-जानी निकली
दिल ने जब नजदीक से देखा, हर सूरत अनजानी निकली


बोझल घडियाँ गिनते गिनते सदमे हो गए लाख गुने
तुम ने कितने सपने देखे, में ने कितने गीत बुने

 

मेरी पसंद- हसन अब्बासी

हसीं कितना जियादा हो गया है
वो जब से और सादा हो गया है

चलो हम भी मुहब्बत कर ही लेंगे
अगर उस का इरादा हो गया है

भुला दूँगा उसे अगले जनम तक
मेरा उस से ये वादा हो गया है

घडी भर उसकी आंखों में उतर कर
समंदर भी कुशादा हो गया है
(कुशादा : एक्स्पंसिवे)


बिछ्ड्ने का उसे भी दुःख है शायद
के अब तो वो भी आधा हो गया है

हसन अब्बासी

 

मेरी पसंद-Bashir Badr

मैं कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है
मगर उस ने मुझे चाहा बहुत है

खुदा इस शाह’र को महफूज़ रखे
ये बच्चों कि तरह हंसता बहुत है

मैं हर लम्हे में सदियाँ देखता हूँ
तुम्हारे साथ एक लम्हा बहुत है

मेरा दिल बारिशों में फूल जैसा
ये बच्चा रात में रोता बहुत है

वो अब लाखों दिलों से खेलता है
मुझे पहचान ले, इतना बहुत है

बशीर बद्र

Monday, December 24, 2007

 

मेरी पसंद-वसीम बरेलवी

अपने हर हर लफ्ज़ का खुद आईना हो जाऊंगा
उस को छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊंगा

तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा ही नहीं
मैं गिरा तो मसला बन कर खडा हो जाऊंगा

मुझ को चलाने दो, अकेला है अभी मेरा सफर
रास्ता रोका गया तो काफिला हो जाऊंगा

सारी दुनिया कि नज़र में है मेरा अहद-ए-वफ़ा
एक तेरे कहने से क्या मैं बेवफा हो जाऊंगा

वसीम बरेलवी

 

मेरी पसंद -खुमार बाराबंकवी

ये मिश्रा नहीं है, वजीफा मेरा है
खुदा है मुहब्बत, मुहब्बत खुदा है

कहूँ किस तरह मैं के वो बेवफा है
मुझे उसकी मजबूरिओं का पता है

हवा को बहुत सरकशी का नशा है
मगर ये न भूले, दिया भी दिया है

मैं उससे जुदा हूँ, वो मुझसे जुदा है
मुहब्बत के मारों पे फजल-ए-खुदा है

नज़र में है जलते मकानों का मंज़र
चमकते हैं जुगनू तो दिल कांपता है

उन्हें भूलना या उन्हें याद करना
वो बिछ्डे हैं जबसे यही मश्गला है

गुज़रता है हर शख्स चेहरा छुपाये
कोई राह में आईना रख गया है

कहाँ तू “खुमार” और कहाँ कुफ्र-ए-तौबा
तुझे पार्साओं ने बहका दिया है

खुमार बरबंक्वी

 

मेरी पसंद-Muzaffar Warsi

मेरी जुदाईयों से वो मिलकर नहीं गया
उसके बगैर मैं भी कोई मर नहीं गया

दुनिया में घूम-फिर के भी ऐसे लगा मुझे
जैसे मैं अपनी जात से बाहर नहीं गया

क्या खूब हैं हमारी तरक्की-पसंदियाँ
जीने बना लिए कोई ऊपर नहीं गया

जुग्राफिये ने काट दिए रास्ते मेरे
तारीख को गिला है के मैं घर नहीं गया

ऎसी कोई अजीब इमारत थी जिंदगी
बाहर से झांकता रहा अन्दर नहीं गया

सब अपने ही बदन पे “मुज़फ्फर” सजा लिए
वापस किसी तरफ कोई पत्थर नहीं गया

मुज़फ्फर वारसी

 

मेरी पसंद -नज्म अफंदी

रिंद को पीने की, पिलवाने की ईद/
वा’एजों को व’अज फरमाने कि ईद/

नज्द में लैला के दीवाने कि ईद/
ईदगाह एक कूचा-ए-दिलदार है/

आशिकों की ईद वस्ल-ए-यार है…..

Sunday, December 23, 2007

 

मेरी pasand -अख्तर शीरानी

तमन्नाओं को ज़िंदा आरजुओं को जवान कर लूँ
यह शर्मीली नज़र कह दे तो कुछ गुस्ताखियाँ कर लूँ

बहार आई है, बुलबुल दर्द-ए-दिल कहती है फूलों से
कहो तो मैं भी अपना दर्द-ए-तुम से बयान कर लूँ

हज़ारों शोख अरमान ले रहे हैं चुटकियाँ दिल में
हया उनकी इजाज़त दे तो कुछ बेबाकियां कर लूँ

कोई सूरत तो हो दुनिया-ए-फानी में बहलने की
ठहर जा अय जवानी मातम-ए-उम्र-ए-रवां कर लूँ

मुझे दोनों जहाँ में एक वोह मिल जायेंगे गर akhtar
तो अपनी हसरतों को बे-नयाज़-ए-दो-जहाँ कर लूँ

अख्तर शीरानी

 

मेरी पसंद -खुमार

हम उन्हें वो हमें भुला बैठे /
दो गुनह-गार ज़हर खा बैठे /
हाल -ए-गम कह के गम बढ़ा बैठे
तीर मारे थे तीर खा बैठे /
आँधियों जाओ अब करो आराम
हम खुद अपना दिया बुझा बैठे /
दिल हलका हुआ मगर
यारों
रो के हम लुत्फ-ए-गम गँवा बैठे /
बे-सहारों का हौसला ही क्या
घर में घबराये, दर पे आ बैठे/
उठ के एक बे-वफा ने दे दी जान
रह गये सारे बा-वफा बैठे/
जब से बिछड़े वो, मुस्कुराए ना हम
सबने छेडा तो लब हिला बैठे/
हश्र का दिन अभी है दूर "खुमार"
आप क्यूँ ज़ाहिदों में जा बैठे/

 

मेरी पसंद

उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी ना सकूं,
ढ़ूंढ़ने उस को चला हूँ जिसे पा भी ना सकूं,


ड़ाल कर ख़ाक मेरे ख़ून पे क़ातिल् ने कहा,
कुछ ये मेंहंदी नहीं मेरी के छुपा भी ना सकूं,

ज़ब्त कम्बख़्त ने और आके गला घोंटा है,
के उसे हाल सुनाऊं तो सुना भी ना सकूं,

उस के पहलू में जो ले जाके सुला दूं दिल को,
नींद ऐसी उसे आये के जगा भी ना सकूं,

Lyrics: Ameer मिनी

 

मेरी पसंद

ना मुहब्बत ना दोस्ती के लिए /

वक़्त रुकता नहीं किसी के लिए /

दिल को अपने सज़ा न दे यूं ही/

ज़माने की बेरुखी के लिए/

कल जवानी का हश्र क्या होगा/

सोच ले आज दो घडी के लिए /

हर कोई प्यार ढूँढ्ता है यहाँ/

अपनी तनहा सी जिंदगी के लिए /

वक़्त के साथ साथ चलता रहे /

यही बेहतर है आदमी के लिए /


 

मेरी पसंद -फानी बदायूनी

मिसल-ए-ख़याल आये थे आ कर चले गए
दुनिया हमारी गम की बसा कर चले गए

फूलों की आस दिल से लगाए हुए थे हम

कांटे वो रास्ते में बिछा कर चले गए

आयी न थी हमारे चमन में बहार अभी
वो ख्वाब आशियाँ में लगा कर चले गए

भूले से भी कभी न जिन्हें हम भुला सके
दिल से हमें वो अपने भुला कर चले गए

 

मेरी पसंद -सागर आज़मी

दुश्मन को भी सीने से लगाना नही भूले
हम अपने बुजुर्गो का ज़माना नही भूले

तुम आंखों की बरसात बचाए हुए रखना
कुछ लोग अभी आग लगाना नही भूलें

ये बात अलग हाथ कलम हो गए अपने
हम आप की तस्वीर बनाना नही भूले

एक उमर हुई मैं तो हँसी भूल चुका हूँ
तुम अब भी मेरे दिल को दुखाना नहीं भूले

 

मेरी पसंद राहत

दोस्ती जब किसी से की जाये
दुश्मनो की भी राये ली जाये
मौत का ज़हर है फिजाओं में
अब कहाँ जा के सांस ली जाये

बस इसी सोच में हूँ डूबा हुआ
ये नदी कैसे पार की जाये
मेरे माजी के ज़ख्म भरने लगे
आज फिर कोई भूल की जाये
बोतलें खोल के तो पी बरसों
आज दिल खोल के भी पी जाये

 

मेरी रचनाएँ

कुछ क़तात

मजनू होना भी मुश्किल है लैला भी आसान नहीं है/
प्यार में दीवाने होते थे वह दौर-ए-जीशान नहीं है/

प्यार भी अब तो सोच समझकर साजिश जैसा होता है /
लफ्ज़ -ए-मुहब्बत के मानों में पहले जैसी जान नहीं है /

अंदाज़-ए-अदावत भी जुदा लगता है /
ज़हर भी इस तरह देते हैं दवा लगता है/

अब मुहब्बत भी सियासत की तरह होती है/
बेवफा यार भी अब जान-ए-वफ़ा लगता है/


शम्स को आइना दिखाता हूँ/
बर्फ की मूरतें बनाता हूँ /

इससे मेरा है खून का रिश्ता /
मैं ग़ज़ल को लहू पिलाता हूँ/

फिक्र छोड़ दे प्यारे होगा जो भी होना है /

आदमी अजल से ही वक़्त का खिलोना है /

दोलतें अमीरों की हैं इन्हीं से बावस्ता /

जिनकी आसमान चादर और ज़मीं बिछौना है /

प्यार जब कर गया असर चुपचाप /

हो गयी सब को फिर खबर चुपचाप /

आइनों में शुमार है अपना /

हम भी कहते हैं सच मगर चुपचाप /

एक भी राज़ दोस्तों पे न खोल /

ये लगा देंगे एक सिफर चुपचाप /

रंग -ओ- निकहत गुलाब जैसी है /

उस की मस्ती शराब जैसी है /

जी में आता है चूम लूं उस को /

वो मुक़द्दस किताब जैसी है /


This page is powered by Blogger. Isn't yours?

Subscribe to Posts [Atom]

Adeeb

रूहेलखंड और बरेली के मशहूर शायरों और कवियों के चुनिंदा कलाम यहाँ पढें

नूरी किरण जूनियर बरेली

फोर्थ डायमेंशन
बरेली टीन वर्ल्ड

अदीब