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Saturday, February 16, 2008
जां निसार अख्तर के चुनिंदा अशआर
अश्आर मिरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं
कुछ शे’र फ़क़त उनको सुनाने के लिए हैं
ये इल्म का सौदा, ये रिसाले, ये किताबें
इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं
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ज़िन्दगी ये तो नहीं, तुझको सँवारा ही न हो
कुछ न कुछ हमने तिरा क़र्ज़ उतारा ही न हो
कू-ए-क़ातिल1 की बड़ी धूम है चलकर देखें
क्या ख़बर, कूचा-ए-दिलदार से प्यारा ही न हो
शर्म आती है कि उस शहर में हम हैं कि जहाँ
न मिले भीक तो लाखों का गुज़ारा ही न हो
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इसी सबब से हैं शायद, अज़ाब1 जितने हैं
झटक के फेंक दो पलकों पे ख़्वाब जितने हैं
वतन से इश्क़, ग़रीबी से बैर, अम्न से प्यार
सभी ने ओढ़ रखे हैं नक़ाब जितने हैं
समझ सके तो समझ ज़िन्दगी की उलझन को
सवाल उतने नहीं है, जवाब जितने हैं /Labels: जां निसार अख्तर
Friday, February 15, 2008
कभी फुरसत मिले तो फातहा पढनें चले आना
तुम्हारी कब्र पर मैं
फ़ातेहा पढ़ने नही आया,
मुझे मालूम था, तुम मर नही सकते
तुम्हारी मौत की सच्ची खबर
जिसने उड़ाई थी, वो झूठा था,
वो तुम कब थे?
कोई सूखा हुआ पत्ता, हवा मे गिर के टूटा था ।
मेरी आँखे
तुम्हारी मंज़रो मे कैद है अब तक
मैं जो भी देखता हूँ, सोचता हूँ
वो, वही है
जो तुम्हारी नेक-नामी और बद-नामी की दुनिया थी ।
कहीं कुछ भी नहीं बदला,
तुम्हारे हाथ मेरी उंगलियों में सांस लेते हैं,
मैं लिखने के लिये जब भी कागज कलम उठाता हूं,
तुम्हे बैठा हुआ मैं अपनी कुर्सी में पाता हूं |
बदन में मेरे जितना भी लहू है,
वो तुम्हारी लगजिशों नाकामियों के साथ बहता है,
मेरी आवाज में छुपकर तुम्हारा जेहन रहता है,
मेरी बीमारियों में तुम मेरी लाचारियों में तुम |
तुम्हारी कब्र पर जिसने तुम्हारा नाम लिखा है,
वो झूठा है, वो झूठा है, वो झूठा है,
तुम्हारी कब्र में मैं दफन तुम मुझमें जिन्दा हो,
कभी फुरसत मिले तो फातहा पढनें चले आना
Labels: निदा फ़ाज़ली
Wednesday, February 13, 2008
ग़रीबी ने किया कड़का, नहीं तो चाँद पर जाता
ग़रीबी ने किया कड़का, नहीं तो चाँद पर जाता
तुम्हारी माँग भरने को सितारे तोड़कर लाता
बहा डाले तुम्हारी याद में आँसू कई गैलन
अगर तुम फ़ोन न करतीं यहाँ सैलाब आ जाता
तुम्हारे नाम की चिट्ठी तुम्हारे बाप ने खोली
उसे उर्दू जो आती तो मुझे कच्चा चबा जाता
तुम्हारी बेवफाई से बना हूँ टाप का शायर
तुम्हारे इश्क में फँसता तो सीधे आगरा जाता
ये गहरे शे’र तो दो वक़्त की रोटी नहीं देते
अगर न हास्य रस लिखता तो हरदम घास ही खाता
हमारे चुटकुले सुनकर वहाँ मज़दूर रोते थे
कि जिसका पेट खाली हो कभी भी हँस नहीं पाता
मुहब्बत के सफर में मैं हमेशा ही रहा वेटिंग
किसी का साथ मिलता तो टिकट कन्फर्म हो जाता
कि उसके प्यार का लफड़ा वहाँ पकड़ा गया वर्ना
नहीं तो यार ये क्लिंटन हज़ारों मोनिका लाता
Labels: हुल्लाड़ मुरादाबादी
रोज़ कुछ टाइम निकालो मुस्कराने के लिए
मसखरा मशहूर है, आँसू छिपाने के लिए
बाँटता है वो हँसी, सारे ज़माने के लिए
ज़ख्म सबको मत दिखाओ, लोग छिड़केंगे नमक
आएगा कोई नहीं मरहम लगाने के लिए
देखकर तेरी तरक्की, खुश नहीं होगा कोई
लोग मौका ढूँढ़ते हैं काट खाने के लिए
फलसफा कोई नहीं है और न मकसद कोई
लोग कुछ आते जहाँ में, हिनहिनाने के लिए
मिल रहा था भीख में सिक्का मुझे सम्मान का
मैं नहीं तैयार था झुककर उठाने के लिए
ज़िन्दगी में गम बहुत हैं, हर कदम पर हादसे
रोज़ कुछ टाइम निकालो मुस्कराने के लिए
Labels: हुल्लाड़ मुरादाबादी
मैं सियासत में चला जाऊं तो नंगा हो जाऊं
मेरी ख़्वाहिश है कि फिर से मैं फ़रिश्ता हो जाऊं
माँ से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊं
कम-से कम बच्चों के होठों की हंसी की ख़ातिर
ऎसी मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊं
सोचता हूं तो छलक उठती हैं मेरी आँखें
तेरे बारे में न सॊचूं तो अकेला हो जाऊं
चारागर तेरी महारथ पे यक़ीं है लेकिन
क्या ज़ुरूरी है कि हर बार मैं अच्छा हो जाऊं
बेसबब इश्क़ में मरना मुझे मंज़ूर नहीं
शमा तो चाह रही है कि पतंगा हो जाऊं
शायरी कुछ भी हो रुसवा नहीं होने देती
मैं सियासत में चला जाऊं तो नंगा हो जाऊं
"http://hi.literature.wikia.com/से लिया गया
Labels: मुनव्वर राना

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