लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी
जिंदगी शम्मा की सूरत हो खुदाया मेरी
दुनीया का मेरे दम अन्धेरा हईओ जाये
हर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाये
हो मेरे दम से यूही मेरे वतन की जीनत
जिस तरह फूल से होती है चमन की जीनत
जिंदगी हो मेरी परवाने की सूरत या रब
इल्म की शम्मा से हो मुझको मोहब्बत या रब
हो मेरा काम गरीबो की हिमायत करना
दर्द मंदों से ज़ईफों से मोहब्बत करना
मेरे अल्लाह बुराई से बचाना मुझको
नेक जो राह हो उस राह पे चलाना मुझको
Labels: दुआ
हर क़दम पर नित नए सानचे मे ढल जाते है लोग
देखते ही देखते कितने बदल जाते हें लोग
किस लिए कीजे किसी गमगश्ता जन्नत की तलाश
जब कि मिट्टी के खिलोने से बहल जाते है लोग
कितने सादा दिल है.नज्द अब भी सुन के आवाज़-ए-जरस
पेश-ओ-पास से बेखबर घर से निकल जाते हें लोग
शमा की मानिंद अहल-ए-अंजुमन से बेनियाज़
अक्सर अपनी आग में चुप-चाप जल जाते है लोग '
शायर' उन की दोस्ती का अब भी दम भरते है. आप
ठोकरे.खा कर तो सुनते है.संभल जाते है.लोग