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Wednesday, April 9, 2008

 

ज़मीन पे चल न सका आसमान से भी गया

ज़मीन पे चल न सका आसमान से भी गया
कटा के पर ये परिंदा उडान से भी गया

तबाह कर गयी पक्के मकान की ख्वाहिश
मैं अपने गाँव के कच्चे मकान से भी गया

परायी आग में कूदा तो क्या मिला तुझ को
उसे बचा न सका अपनी जान से भी गया

भुलाना चाहा तो भुलाने की इंतहा कर दी
वह शख्स अब मेरे वहम ओ गुमान से भी गया

किसी के हाथ का निकला हुआ वह तीर हूँ मैं
हद्फ़ को छू न सका और कमान से भी गया

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क्यूं डरें ज़िंदगी में क्या होगा

क्यूं डरें ज़िंदगी में क्या होगा
कुछ न होगा तो तजुर्बा होगा

हंसती आंखों में झाँक कर देखो
कोई आंसू कहीं छुपा होगा

इन दिनों नउम्मीद सा हूँ मैं
शायद उसने भी ये सुना होगा

देखकर तुमको सोचता हूँ मैं
क्या किसी ने तुम्हें छुआ होगा

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